Friday, January 12, 2018

मौजूदगी

एक गुरु के पास दो युवक आये और उन्होंने दीक्षित होने की प्रार्थना की | गुरु ने कहा कि इससे पहले कि तुम्हें दीक्षित करूँ, एक परीक्षा | यह लो -- एक कबूतर तो ले, एक कबूतर तू ले -- और दोनों जाओ और ऐसी जगह मार कर कबूतर को जाओ, जहाँ कोई देखने वाला न हो |

एक युवक तो भागा, जल्दी बाहर गया, बगल की गली में पहुंचा, वहां कोई भी नहीं था | उसने जल्दी से गर्दन मरोड़ दी, लौट कर आ गया | उसने कहा, लो गुरुदेव | दीक्षा दो | गुरु ने कहा कि रुक |

दूसरा युवक कोई तीन महीने तक न लौटा | और पहला युवक बड़ा परेशान होने लगा कि हद हो गयी | अभी तक इसको ऐसी जगह न मिली जहां यह मार लेता, जहां कोई देखने वाला न हो | और बगल की गली काफी है |मैं उसमें मार कर आया हूँ | गुरु कहता, तो चुप रह ! और जब तक दूसरा न लौट आएगा तब तक मैं तुझे कुछ उत्तर न दूंगा | उसको आने दे |अब तो दूसरा आता ही नहीं | पहला घबड़ाने लगा | उसने कहा मुझे तो दीक्षा दे दें |

तीन महीने बाद दूसरा युवक लौटा कबूतर को साथ लेकर | हाल बेहाल था | शरीर सूख गया था लेकिन आँखों में एक अपूर्व ज्योति थी | गुरु के चरणों में सिर रख कर उसने कबूतर लौटा दिया कि यह नहीं हो सकता | आपने भी कहाँ की उलझन दे दी ! तीन महीने परेशान हो गया | सब जगह खोजा | ऐसी कोई जगह न मिली जहाँ कोई देखने वाला न हो |

फिर मैं अँधेरे तलघरे में चला गया | वहां कोई भी न था | ताला लगा दिया | रौशनी की एक किरण न पहुँचती थी, देखने का कोई सवाल ही नहीं था | लेकिन यह कबूतर रहा था | इसकी टुकुर टुकुर आँखें, इसके ह्रदय की धड़कन ! मैंने कहा, यह तो मौजूद है | तो फिर मैंने इसे ऐसा बंद किया डब्बों में कि इसकी धड़कन न सुनाई पड़े, न इसकी आँख दिखाई पड़ें | फिर इसे लेकर मैं गया, लेकिन तब भी हार हो गयी क्योंकि मैं मौजूद था | आपने कहा था, कोई भी मौजूद न हो | यह भी क्या शर्त लगा दी ? मेरी मौजूदगी तो रहेगी ही, अब मैं इसको कहीं भी ले जाऊं | मैं हार गया | अब मैं ले आया | आप चाहे दीक्षा, चाहे न दें ! लेकिन इस परीक्षा में ही मुझे बहुत कुछ मिल गया है | एक बात मेरी समझ में आ गयी कि एकमात्र ऐसी मौजूदगी है जो कभी भी नहीं खोयेगी, वह मेरी है | गुरु ने कहा, तू दीक्षित कर लिया गया |

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