Tuesday, April 23, 2019

अनासक्ति

 एक बार गोपियोंको पता चला कि दुर्वासा ऋषि आए हुए हैं और वे यमुनाके दूसरे छोरपर ठहरे हुए हैं । गोपियां ऋषि दुर्वासाके लिए व्यंजन आदि सेवामें समर्पित करना चाहती थी; किन्तु यमुनामें जल अधिक था इसलिए पार करना कठिन था । जब गोपियोंको कोई मार्ग न मिला तब वो अपने प्रिय कृष्णके पास गईं और अपनी समस्या बताई । श्री कृष्णने कहा- ‘जाओ यमुनासे कह दो, यदि कृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी हैं तो यमुना हमें मार्ग दे दो । गोपियां मन ही मनमें हंसी और सोचा अच्छा दिनभर हमारे पीछे घूमते हैं, रास रचाते हैं और अपनेको आजीवन ब्रह्मचारी कह रहे हैं; किन्तु जो कृष्णने कहा वह गोपियोंने श्री यमुनाजीसे कह दिया और श्री यमुनाजीने भी मार्ग दे दिया । श्रीयमुनाजीको पार कर गोपियां ऋषि दुर्वासाके निकट गई और उन्हें भोजन कराकर जब चलनें लगी तब उन्होंने ऋषि दुर्वासासे कहा कि हम वापस कैसे जाएं ? ऋषि दुर्वासाने पूछा- ‘आप सभी आईं कैसे थीं ? उन्होंने श्री कृष्णकी बात बता दी, तब ऋषि दुर्वासा बोले, “जाओ यमुनासे कह दो यदि दुर्वासा नित्य उपवासी हैं तो यमुना मार्ग दे दो । गोपियोंको बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने ढेर सारे व्यंजनोंको ग्रहण करनेके पश्चात भी ऋषि दुर्वासा स्वयंको नित्य उपवासी कह रहें हैं; किन्तु उन्होंने ऋषिकी उपेक्षा न करते हुए यही वाक्य श्रीयमुनाजीसे कह दिया और श्री यमुनाजीने गोपियोंको वापस जानेका मार्ग दे दिया और गोपियां वापस आ गईं ।

रास रचानेवाले श्रीकृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी और व्यंजनोंको ग्रहण करनेवाले ऋषि दुर्वासा नित्य उपवासी कैसे ?रास रचानेवाले श्रीकृष्ण और व्यंजनोंको ग्रहण करनेवाले ऋषि दुर्वासा अनासक्त होनेके कारण कर्म करते हुए भी कर्मफलसे मुक्त थे ! यही साधनाका महत्त्व है !