Saturday, August 25, 2018

परिचय

जब हनुमानजी से भगवान् का पहली बार मिलन हुआ था, तो प्रभु ने उनसे पूछा था --  हनुमान, मैंने तो अपना चरित्र सुना दिया, अब आप भी अपनी कथा सुनाइए। इस पर हनुमानजी ने उन्हें उलाहना दी थी --
 महाराज ,जीव भले ही आपको भूल जाए ,पर आप भला जीव को कैसे भूल सकते हैं ? मैंने तो जीव के स्वभाववश आपसे आपका परिचय पूछा, जीव विस्मृतशील है, वह भूल जाता है, पर आप तो सर्वज्ञ हैं और सर्वज्ञ होने के नाते क्या आपको पता नहीं कि मैं कौन हूँ ? आप कब से भूलने लगे ? भगवान राम ने सफाई दी -- नहीं, नहीं, भूला नहीं हूँ
इसके उत्तर में हनुमानजी ने जो कहा, उसे परिचय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि परिचय तो तब होता है जब हनुमानजी अपने जन्म की चरित्र की कथा सुनाते और कहते कि मैं पवन और अंजना का या कि केशरी और अंजना का पुत्र हूँ, पर वे तो कहते हैं --
 - मैं मन्द हूँ, मोह के वश में हूँ, कुटिल हृदय वाला हूँ, अज्ञानी हूँ। इस पर भगवान् ने हँसकर हनुमानजी की ओर देखा, मानो यह पूछ रहे हों -- यह कथा सुना रहे हो या व्यथा ? हनुमानजी बोले --महाराज, मैं यही तो कहना चाहता था कि कथा तो केवल आपकी ही है, जीव की तो व्यथा ही व्यथा है। जीव अपनी व्यथा और समस्या ही आपके सामने रख सकता है। हनुमानजी की आकुल वाणी सुनकर भगवान उन्हें हृदय से लगा लेते हैं और उनका नाम लेते हुए कहते हैं -- मैं तुम्हें भूला नहीं हूँ ; यदि मैं भूला होता तो तुम्हारे न बताने पर भी तुम्हारा नाम मुझे कैसे ध्यान में रहता ?

No comments:

Post a Comment