Monday, October 22, 2018

प्रेम की परीक्षा

 चकवा पक्षी के विषय में प्रसिद्धि है कि रात्रि के समय चकई से उसका वियोग हो जाता है और दोनों एक दूसरे के लिए विलाप करते रहते हैं। सारस के सम्बन्ध में कहा जाता है यदि उसके जोड़े में से एक की मृत्यु हो जाय, तो दूसरा भी अपने प्राणों का परित्याग कर देता है। एक दिन सारस और चकवा कहीं मिल गये। दोनों में विवाद छिड़ गया कि किसकी स्थिति सही है। सारस ने चकवे को फटकारते हुए कहा, "यह रात भर क्या चिल्लाया करते हो ?" चकवा बोला, "तो क्या अपनी प्रियतमा के वियोग में भी न चिल्लाएँ ?" सारस तिरस्कार करता हुआ बोला, "यह तो तुम प्रेम का विज्ञापन करते हो। यदि सचमुच तुम्हारी प्रीति होती, तो वियोग में तुम्हारी मृत्यु हो जाती। यह चीखना-चिल्लाना बेकार है। जब तुम वियोग में भी जीवित बने रहते हो, तब तुम्हारी प्रीति सार्थक नहीं है !" उत्तर में चकवे ने कहा, "तुमने केवल मिलन को ही जाना है, वियोग में कभी प्रेम की परीक्षा लेने का तुमने अवसर ही नहीं दिया है, इसलिए तुम क्या जानो की वियोग की स्थिति में किस पीड़ा का अनुभव होता है ? तुम तो केवल मिलन-सुख के प्रेमी हो, वियोग की स्थिति में प्राणों का परित्याग करके तुम कायरता का ही परिचय देते हो, तुम सच्चे प्रेमी नहीं हो !" तो भक्त का प्रेम कैसा होना चाहिए ? -- सारस जैसा या चकवा-जैसा ? श्री हरिवंश स्वामीजी एक बड़ी सुंदर बात कहते हैं --भक्ति का रस न तो मिलन-रस है और न विरह-रस, वह तो मिलन-बिरहा रस है, जहाँ संयोग में भी निरन्तर वियोग की अनुभूति बनी रहती है और वियोग में निरन्तर संयोग की। 

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