Saturday, January 20, 2018

दान पुण्य की महिमा

एक समय की बात है. धन-ऐवर्श्य से भरपूर सुख-सुविधाओं से सुसज्जित एक धनवान परिवार में चार भाई थे। घर का मुखिया उनका पिता अपने चारों पुत्रों के व्यवहार से अत्यधिक प्रसन्न था। सब लोग परस्पर प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। पिता की सद्आज्ञाओं का पालन और मां की भावनाओं का हृदय से सम्मान करना उनकी खास आदतों में शुमार था। इस व्यापारी परिवार में बडे तीन भाई विवाहित थे, तीनों की धर्म पत्नियां भी अत्यंत सेवाभावी थीं, सब लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे, घर में किसी भी तरह से एकता का अभाव नहीं था।समय के अनुसार व्यापारी सेठ के चौथे पुत्र की शादी भी धूमधाम से सम्पन्न हुई। नई-नवेली दुल्हन एक खुशहाल परिवार में बहुत बन ठन कर आई, सबने उसका खूब स्वागत किया। बहू को आए अभी पांच ही दिन हुए थे कि उसने देखा-इस बडे घर के द्वार पर भिखारी आता है मन में आस लेकर, लेकिन जब कोई उसकी आवाज नहीं सुनता तो चला जाता है निराश होकर। छठे दिन बहू नीचे वाले कमरे में बैठी हुई थी। सुबह का समय था, सेठ जी नियमित रूप से दो घंटे तक पूजा किया करते थे, प्रतिदिन की तरह वे अपने पूजा-पाठ के कार्यक्रम में संलग्न थे।
तभी उनके द्वार पर एक भिखारी आया। उसने अलख जगाई, भगवान के नाम पर कुछ दे दो मेरे दाता। आज इस नई-नवेली दुल्हन से रहा नहीं गया, उसने प्यार से, मगर ऊंची आवाज से कहा-बाबा चले जाओ यहां से, यहां तो सब बासी खाना खाते हैं, ताजा भोजन यहां नहीं बनता, देने के लिए यहां कुछ भी नहीं है। थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर दो-तीन याचक और आए, उन्होंने भी अलख जगाई, बहू ने उन्हें भी यही जबाव दिया। सेठ जी पूजा घर में सब कुछ सुन रहे थे। उन्हें बडा दु:ख हुआ कि बहू को क्या यहां ताजा भोजन नहीं मिलता अगर ऐसा है तो बड़ा अनर्थ हुआ है। थोड़ी देर बाद सेठ जी से कोई मिलने आया, उसने आवाज दी कि सेठ जी घर में हैं क्या? और अन्य तो कोई बोला नहीं, छोटी बहू ने झट से कहा- सेठ जी दुकान गए हैं। फिर कोई मिलने वाला आया तो बहू ने कहा- सेठ जी बैंक गए हैं, फिर कोई व्यक्ति किसी काम से आया तो बहू ने कहा- सेठ जी कारखाने गए हैं। सेठ जी यह सब सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुए कि बहू ने ऐसा व्यवहार क्यों किया? मैं तो यहीं पर हूं और यह सबको झूठ बोल रही है।
प्रतिदिन की तरह सायं को सभी घर के सदस्य खाने की टेबल पर इकट्ठे हुए। चारों पुत्र, चारों पुत्र वधुएं, सेठ-सेठानी। भोजन रुचिकर बनाने की परम्परा सेठजी के घर में लम्बे समय से चली आ रही थी, नौकर-चाकर भोजन बनाते थे और प्रेमपूर्वक सब मिल-जुलकर ही खाते थे। किन्तु भोजन की शुरूआत सेठ जी से ही होती थी। सारे व्यंजन मेज पर सजाए गए, गर्म-गर्म पूड़ियां आती रहीं, लेकिन आज सेठजी ने भोजन प्रारंभ नहीं किया। सब लोग अपने-अपने हिसाब से सोच रहे हैं, डर रहे हैं कि आज पता नहीं क्या बात है, पिता जी भोजन क्यों नहीं ग्रहण कर रहे हैं? काफी देर बाद सेठ जी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए छोटी बहू से पूछा, बेटी तुम्हें घर में कोई परेशानी है, कोई तकलीफ है, या यहां तुम्हारे मान-सम्मान में कोई कमी है? छोटी बहू भी सबकी तरह सहमी हुई थी, उसने अपनी नजर नीची रखते हुए कहा पिताजी? मैं यहां खुश हूं। सभी लोग मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। मुझे प्यार करते हैं, सभी मेरे लिए देवतुल्य हैं, यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके घर की बहू बन पाई।
सेठजी ने कहा- तुम हमारी बेटी के समान हो, अगर तुम्हें कोई तकलीफ हो तो नि:संकोच होकर कहो, बहू ने अपने ससुर के चरण छूकर कहा कि मुझे यहां कोई परेशानी नहीं है, कृपया भोजन ग्रहण कीजिए, सास माता ने बहू के सुर में सुर मिलाते हुए कहा- आप भोजन करो- यह सब ठण्डा हुआ जा रहा है।
सेठ जी बहू के जवाब से संतुष्ट नहीं थे, उनके कानों में तो प्रात:काल वाली आवाजें गूंज रही थीं, कि सेठ जी बैंक गए हैं, कारखाने गए हैं, दुकान पर गए हैं, हमारे यहां खाना बासी होता है आदि। सेठ जी ने पुन: प्यार से कहा- बेटी। जब तुम्हें यहां कोई तकलीफ नहीं है तो तुमने सुबह भिखारी को यह क्यों कहा कि यहां तो सब बासी खाना खाते हैं, ताजा तो बनता ही नहीं और यह क्यों कहा कि सेठ जी बैंक गए हैं, दुकान गए हैं, कारखाने गए हैं।
छोटी बहु सुप्रिया विनम्रता से बोली पिताजी। मैं क्षमा चाहती हूं, किन्तु मैं पिछले पांच दिनों से सुनती-देखती आ रही हूं कि हमारे द्वार से भिखारी रोज खाली हाथ लौटकर जाते हैं, दान-पुण्य करते हुए कोई नजर नहीं आ रहा है, हम किसी जरूरतमंद को भोजन कराए बिना ही भोजन करते हैं। पिताजी यह तो हमारे पूर्व जन्मों का पुण्य है कि हम खुशहाल हैं, किन्तु नए पुण्य तो हम अर्जित कर ही नहीं रहे, हम पूर्व में किए बासी पुण्य कर्मों के सुख भोग रहे हैं, नए करेंगे तो उनका फल ताजा होगा। सेठ जी को ये जागृति के वचन बहुत सुहाए, उन्होंने तुरन्त कहा- बेटी तुम ठीक कहती हो, कल से क्या। आज से ही हम दान-पुण्य करके भोजन ग्रहण करेंगे।
सेठ जी ने कहा- पर बेटी तुम यह तो बताओ कि तुमने ऐसा क्यों कहा कि सेठ जी बैंक गए हैं, दुकान पर गए हैं, कारखाने में गए हैं। बहू ने कहा- पिताजी। आप पूजाघर में थे, लेकिन सच बताना जब मैंने यह कहा कि आप बैंक गए हैं तब आपका मन पूजा में था या बैंक में, जब मैंने दुकान पर गए हैं कहा तो आपका मन उस समय कहां था? जब मैंने कारखाने की बात कही तब क्या आप अपने मजदूरों के वेतन की बात नहीं सोच रहे थे? छोटी बहू के द्वारा ऐसा सुनकर सेठजी की आंखों में प्रेम के आंसू आ गए, और बहू का भी गला रुंध सा गया। सेठ जी ने बहू से कहा- बेटी तुम्हारी सारी बातें सही हैं, तुम केवल बहू बनकर हमारे घर नहीं आई बल्कि सौभाग्य लक्ष्मी बनकर हमारे घर में पधारी हो। तुमने हमारी आंखें खोलीं, हमें जगाया हम तेरे बहुत शुक्रगुजार हैं। प्रतिदिन दान-पुण्य जरूर करेंगे, भगवान की भक्ति मन से करेंगे।

No comments:

Post a Comment