Monday, January 29, 2018

श्रद्धा

एक बार गुरुजी सत्संग करके आ रहे थे।रास्ते में गुरुजी का मन चाय पीने को हुआ। उन्होंने अपने ड्राइवर को कहा-“महापुरुषों, हमे चाय पीनी है।” ड्राइवर गाड़ी 5 स्टार होटल के आगे खड़ी कर दी। गुरुजी ने कहा- “नहीं आगे चलो यहाँ नहीं।” फिर ड्राइवर ने गाड़ी किसी होटल के आगे खड़ी कर दी। गुरूजी ने वह भी मना कर दिया।काफी आगे जाकर एक छोटी सी ढाबे जैसी एक दुकान आई। गुरूजी ने कहा- “यहाँ रोक दो। यहाँ पर पीते हैं चाय।” ड्राइवर सोचने लगा कि अच्छे से अच्छे होटल को छोड़ कर गुरुजी ऐसी जगह चाय पीएंगे। खैर वो कुछ नहीं बोला। ड्राइवर चाय वाले के पास गया और बोला-“अच्छी सी चाय बना दो।”

जब दुकानदार ने पैसों वाला गल्ला खोला तो उसमे गुरूजी का सरूप फोटो लगा हुआ था।गुरूजी का सरूप देख कर ड्राइवर ने दुकानदार से पूछा-“तुम इन्हें जानते हो, कभी देखा है इन्हें?”तो दुकानदार ने कहा-
“मैंने इनको देखने जाने के लिए पैसे इकठे किये थे। जो कि चोरी हो गए, और मैं नहीं जा पाया।पर मुझे यकीन है कि गुरूजी मुझे यही आ कर मिलेंगे।”तो ड्राइवर ने कहा-“जाओ और चाय उस कार मैं दे कर आओ।”तो दुकानदार ने बोला-“अगर मैं चाय देने के लिए चला गया तो कहीं फिर से मेरे पैसे चोरी न हो जायें।” तो ड्राइवर ने कहा-“चिंता मत करो अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारे पैसे अपनी जेब से दूंगा।”*

दुकानदार चाय कार मैं देने के लिए चला गया।

जब वहां उसने गुरुजी के देखा तो हैरान हो गया।

आँखों में आंसू देखे तो गुरू जी ने कहा-“तूने कहा था कि मैं तुम्हे यहीं मिलने आऊं और अब मैं तुमको मिलने आया हूँ तो तुम रो रहे हो।”उस आदमी के अन्दर आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

No comments:

Post a Comment