Friday, December 1, 2017

भक्ति प्रेम

एक गोपी यमुना किनारे बैठी प्राणायाम कर रही थी। तभी वहां नारद जी वीणा बजाते हुए आये,नारद जी बड़े ध्यान से देखने लगे गोपी कर क्या रही है क्योकि व्रज में कोई ध्यान लगाये ये बात उन्हें हजम ही नहीं हो रही थी बहुत देर तक विचार करते रहने पर भी उन्हें समझ नहीं आया तो वे गोपी के और निकट गए और गोपी से बोले,"देवी! ये आप क्या कर रही है, बहुत देर तक विचार करने पर भी मुझे समझ नहीं आ रहा क्योंकि व्रज में कोई ध्यान लगाये,वो भी इस तरह प्राणायाम आदि नियमों सहित ऐसा तो व्रज में कभी सुना नहीं फिर ऐसा क्या हो गया कि आपको ध्यान लगाने की आवश्यकता पड़ गई?" गोपी बोली,"नारद जी!मै जब भी कोई काम करती हूं तो कर नहीं पाती हर समय वो नंद का छोरा आंखों में बसा रहता है,घर लीपती हूं तो गोवर में वही दिखता है लीपना तो वही छूट जाता है और कृष्ण के ध्यान में ही डूब जाती हूं,रोटी बनाती हूं तो जैसे ही आटा गूदती हूं, तो नरम-नरम आटा में कृष्ण के कोमल चरणों का आभास होता है, आटा तो वैसा ही रखा रह जाता है और में कृष्ण की याद में खो जाती हूं, कहां तक बताऊ नारद जी, जल भरने यमुना जी जाती हूं तो यमुना जी में,जल की गागर में, रास्ते में, हर कहीं नंदलाला ही दिखायी देते हैं। मै इतना परेशान हो गई हूं कि कृष्ण को ध्यान से निकालने के लिए ध्यान लगाने बैठी हूं।" हमें तो भगवान को याद करना पड़ता है,भगवान को याद करने के लिए ध्यान लगाना पड़ता है,और गोपी को ध्यान से निकलने के लिए ध्यान में बैठना पड़ता है। गोपी की हर क्रिया में कृष्ण है, गोपी ने अपने ह्रदय में केवल कृष्ण को बैठा रखा है  

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