Saturday, November 18, 2017

गीता का सच्चा पाठ

एक समय की बात है।चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी से दक्षिण की यात्रा पर निकले थे | रास्ते में एक सरोवर के किनारे पर एक ब्राह्मण को गीता पाठ करते देखा | वह गीता पाठ में इतना तल्लीन था की उसे अपने शरीर की भी सुध नहीं थी | उसका हृदय गदगद हो रहा था और नेत्रों से आंसुओं की धारा बह रही थी| पाठ समाप्त होने पर चैतन्य ने पूछा, " तुम तो श्लोकों का अशुद्ध उच्चारण कर रहे थे, तुम्हे इनका अर्थ कहाँ मालूम होगा?" उसने उत्तर दिया, "भगवन! मैं कहाँ जानूं संस्कृत? मैं तो जब पढने बैठता हूँ तो ऐसा लगता है की कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर बड़ी भारी सेनायें सजी हुयी खड़ी हैं | जहां बीच में एक रथ पर भगवान् कृष्ण अर्जुन से कुछ कह रहे हैं | उन्हें देख कर रुलाई आ रही है |" चैतन्य महाप्रभु ने उसकी ऐसी निर्मल अत्यंत प्रेमपूर्ण भावना देख कहा," भैया ! तुम्ही ने गीता का सच्चा अर्थ जाना है |" और उन्होंने उसे अपने गले लगा लिया...

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