Thursday, November 16, 2017

हिसाब किताब

एक समय की बात है. किसी गांव में एक कुटिया में एक साधु रहते थे। सीधा-सादा जीवन, ईश्‍वर का नाम लेने और माला फेरने में उनका पूरा दिन बीत जाता। उन्हें मोक्ष प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा थी। जितनी बार ईश्‍वर का ध्यान करते या जितनी बार वह अपनी माला फेरते, कॉपी में लिख लेते। एक दिन साधु की कुटिया के ठीक सामने एक ग्वालिन ने दुकान लगा ली। हर दिन सुबह के वक्‍त वह बाल्टी भरकर गाय का दूध लाती। ग्राहकों से दूध का मूल्‍य लेती और तौल कर बर्तन में दूध डाल देती। कोई ग्राहक यदि मोलभाव करने की कोशिश करता, तो वह उसे तीखे स्वर में तुरंत चलता कर देती। मजाल कि कोई उससे छटांक भर भी अधिक दूध ले पाता।

लेकिन उसके पास रोजाना ही एक बच्चा आता। बच्चे के पास कभी पैसे होते, कभी नहीं। पर न तो ग्वालिन उससे कोई सवाल पूछती, न पैसे गिनती। उसका बर्तन दूध से भर देती। यह देख साधु सोच में पड़ जाते। वह कड़क ग्वालिन उस बच्चे के साथ क्यों इतनी कोमल थी, इस जिज्ञासा ने उन्हें परेशान कर डाला। इतना कि माला फेरने में भी उनका ध्यान न लगता।

काफी दिनों तक सोचने के बाद आखिरकार एक दिन उनसे रहा न गया। वह उस ग्वालिन के पास गए और बोले, ‘बहन, उस बच्चे में ऐसा क्या है कि आप रोजाना ही उसका बर्तन दूध से भर देती हैं, जबकि दूसरों के साथ आप इतना कड़ा रूख रखती हैं।’ ग्वालिन साधु को देख मुस्कराई, बोली, ‘आप इतना भी नहीं समझे महाराज/ प्रेम से भारी भला क्या वस्तु है! क्या आपने बच्चे की आंखों में कभी झांक कर देखा है/ उनमें उसका सच्चा प्रेम झलकता है, फिर उससे भला कैसा सौदा।’

यह सुन साधु हक्का-बक्का रह गए। उनके हाथ से माला गिर गई। वर्षों से जिस ज्ञान की उन्हें तलाश थी, अचानक ही उस सीधी-सादी ग्वालिन ने उन्हें बिना मांगे दे दिया। पूजा-पाठ, माला फेरना, जप सभी की व्यर्थता सामने खुल गई। लगा जैसे यह सब ईश्‍वर से सौदा करने जैसा था। वह जान गए कि सच्ची पूजा तो सच्चे प्रेम में ही छुपी है। सच्ची प्रार्थना वही है, जो सच्चे प्रेम के साथ की जाए। 

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