Saturday, November 18, 2017

विजय मन्त्र

एक बार बाबा फरीद कहीं जा रहे थे। एक व्यक्ति उनके साथ चलने लगा। उसकी जिज्ञासा ने उसे बाबा के साथ कर दिया था। व्यक्ति ने बाबा से पूछा , ' क्रोध को कैसे जीतें , काम को कैसे जीतें ?'

ऐसे प्रश्न लोग बाबा से पूछते रहते थे। बाबा ने बड़े स्नेह से उस व्यक्ति का हाथ पकड़ा और बोले , ' तुम थक गए होगे। चलो किसी पेड़ की छाया में विश्राम करते है। ' बाबा बोले , ' बेटा ! समस्या क्रोध और काम को जीतने की नही , उन्हें जानने की है। वास्तव में न हम क्रोध को जानते है और न काम को। हमारा यह अज्ञानहै कि हमें बार - बार हराता है। इन्हें जान लो तो समझो जीत पक्की है। जब हमारे अंदर क्रोध प्रबल होता है , काम प्रबल होता है , तब हम नहीं होते हैं। हमें होश ही नहीं होता है। इस बेहोशी में जो कुछ होता है , वह मशीनी यंत्र की भांति हम किया करते हैं। बाद में केवल पछतावा बचता है। बात तो तब बने , जब हम फिर से सोयें नहीं। अंधेरे में पड़ी रस्सी सांप जैसी नजर आती है। इसे देख कर कुछ तो भागते हैं , कुछ उससे लड़ने की ठान लेते हैं। लेकिन गलती दोनों ही करते है। ठीक तरह से देखने पर पता चलता है कि वहां सांप तो है ही नहीं। बस जानने की बात है। इस तरह इंसान को अपने को जानना होता है। अपने में जो भी है , उससे ठीक से परिचित भर होना है। बस , फिर तो बिना लड़े ही जीत हासिल हो जाती है। '

उस व्यक्ति को अपने सवाल का जवाब मिल गया।

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