Monday, November 20, 2017

सच्ची नमाज़

एक समय की बात है.नानक एक मुसलमान नवाब के घर मेहमान थे। नानक को क्या हिंदू क्या मुसलमान! जो ज्ञानी है, उसके लिए कोई संप्रदाय की सीमा नहीं। उस नवाब ने नानक को कहा कि अगर तुम सच ही कहते हो कि न कोई हिंदू न कोई मुसलमान, तो आज शुक्रवार का दिन है, हमारे साथ नमाज पढ़ने चलो। नानक राजी हो गए। पर उन्होंने कहा कि अगर तुम नमाज पढ़ोगे तो हम भी पढ़ेंगे। नवाब ने कहा, यह भी कोई शर्त की बात हुई? हम पढ़ने जा ही रहे हैं। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। मुसलमान-हिंदू सब इकट्ठे हो गए। हिंदुओं में तहलका मच गया। नानक के घर के लोग भी पहुंच गए कि यह क्या कर रहे हो? लोगों को लगा कि नानक मुसलमान होने जा रहे हैं।  नानक मस्जिद गए। नमाज पढ़ी गई। नवाब बहुत नाराज हुआ। बीच-बीच में लौट-लौट कर देखता था कि नानक न तो झुके, न नमाज पढ़ी। बस खड़े हैं। जल्दी-जल्दी नमाज पूरी की, क्योंकि क्रोध में कहीं नमाज हो सकती है! करके किसी तरह पूरी, नानक पर लोग टूट पड़े। और उन्होंने कहा, तुम धोखेबाज हो। कैसे साधु, कैसे संत! तुमने वचन दिया नमाज पढ़ने का और तुमने की नहीं।

नानक ने कहा, वचन दिया था, शर्त आप भूल गए। कहा था कि अगर आप नमाज पढ़ोगे तो मैं पढूंगा। आपने नहीं पढ़ी तो मैं कैसे पढ़ता? नवाब ने कहा, क्या कह रहे हो? होश में हो? इतने लोग गवाह हैं कि हम नमाज पढ़ रहे थे। नानक ने कहा, इनकी गवाही मैं नहीं मानता, क्योंकि मैं आपको देख रहा था भीतर क्या चल रहा है। आप काबुल में घोड़े खरीद रहे थे। नवाब थोड़ा हैरान हुआ; क्योंकि खरीद वह घोड़े ही रहा था। उसका अच्छे से अच्छा घोड़ा मर गया था उसी दिन सुबह। वह उसी की पीड़ा से भरा था। नमाज क्या खाक! वह यही सोच रहा था कि कैसे काबुल जाऊं, कैसे बढ़िया घोड़ा खरीदूं, क्योंकि वह घोड़ा बड़ी शान थी, इज्जत थी। और नानक ने कहा, यह जो मौलवी है तुम्हारा, जो पढ़वा रहा था नमाज, यह खेत में अपनी फसल काट रहा था। और यह बात सच थी। मौलवी ने भी कहा कि बात तो यह सच है। फसल पक गयी है और काटने का दिन आ गया है, गांव में मजदूर नहीं मिल रहे हैं और चिंता मन पर सवार है।

तो नानक ने कहा, अब तुम बोलो, तुमने नमाज पढ़ी जो मैं साथ दूं?

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