Friday, November 17, 2017

गुरु परीक्षा

एक समय की बात है  गुरु नानकदेव जी घोड़े पर बैठकर कहीं से करतारपुर लौट रहे थे ! भाई लह्णा जी ,गुरु पुत्र बाबा श्री चन्द जी बाबा लखमीचन्द जी और साधसंगत संग चल रही थी ;रास्ते में कीचड़ से भरा एक गन्दा नाला आया ! गुरु नानकदेव जी के पास एक कटोरा था ;उन्होंने वह कटोरा पुल पार करते समय उस गन्दे नाले में फेंक दिया !सबको ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह कटोरा उनसेे छिटक कर गन्दे नाले में जा गिरा है ! नानक साहब ने हुक्म किया कि कोई सिख जा कर वह कटोरा इस नाले से निकाल आओ !कोई आगे नही बढ़ा ;गुरु नानकदेव जी ने अपने पुत्र बाबा श्री चन्द जी को कटोरा निकालने को कहा !बाबा श्री चन्द जी ने उत्तर दिया -पिता जी आप जैसे दिव्यात्मा को कटोरे से इतना मोह नही करना चाहिये आप चाहें तो आपको नया कटोरा ले देते है !बाबा लखमी चन्द जी के भी यही विचार थे ;एक साधारण से कटोरे की खातिर एक गंद से भरे नाले में कूदना सब को बेवकूफी लग रही थी ! लेकिन यह कटोरा मुझे अतिप्रिय है इतना कह कर गुरु नानकदेव जी ने भाई लह्णा जी की तरफ देखा !मेरे गुरु को अतिप्रिय..बस इतना सुना ;अगले ही पल भाई लह्णा उस कीचड़ से भरे नाले में कूद गये और गुरु नानकदेव जी का प्रिय कटोरा ढूंढने लगे ! कुछ देर के बाद भाई लह्णा जी को कटोरा मिल गया ;उसे अच्छी तरह मांज धो कर साफ़ करके गुरु चरणों में पेश कर दिया !गुरु नानक साहब ने पूछा -भाई लहणे जब कोई इस कीचड़ में उतरने को तैयार नही था तो तू क्यो कूदा ?

भाई लहणे जी ने हाथ जोड़ कर कहा -दाता मैं सिर्फ इतना जानता हूँ मेरा गुरु नानक जिस से प्रेम करता है उसको कभी पापो से भरे कीचड़ में फँसा नही रहने देता !वह अपनी कुदरत को हुक्म दे कर उस प्रिय वस्तु को उस नरक से निकाल कर उसे अपने लायक बनाकर उसे अंगीकार करते हैं !दाता मैंने कुछ नही किया ;जो कुछ करवाया है आप ने करवाया है ! ऐसे विचार सुनकर गुरु नानक साहब ने भाई लहणे को अपने हृदय से लगा लिया और बोले -भाई लह्णा कोई मन में आस है तां बोल !भाई लहणे ने कहा -हे दातार इस कटोरे की तरह मुझे भी आपका इतना प्यार मिले कि विकारो से भरा मैं पापी आपके अंगीकार हो सकूँ !

गुरु नानक साहब बोले -भाई लह्णा आप मुझे अतिप्रिय हो !आप अपने आप को पाप और विकार से भरा कहते हो ;आप तो सेवा सिमरन की ऐसी गंगा हो जिसमे पाप और विकार कभी ठहर ही नही सकता !कालांतर मे यही भाई लह्णा जी सतगुरु सेवा और सिमरन के प्रतीक धन्न गुरु अंगद साहब जी महाराज के नाम से प्रख्यात हुए 

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